April 25, 2024

हैपी न्यू ईयर के साथ हैपी नेचर भी कहना होगा – प्रो घनश्याम गुप्ता

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चित्रकूट- महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विषय के प्राध्यापक प्रो घनश्याम गुप्ता ने कहा कि आज से नया वर्ष 2023 आ रहा है ।हम सभी एक दूसरे को हैप्पी न्यू ईयर कहकरनव वर्ष को मंगलमय होने की शुभकामनाएं देते हैं। अब हमें नववर्ष को मंगलमय होने की कामना के साथ-साथ प्रकृति को भी हैप्पी नेचर कहना होगा।स्मरण रहे कि इस ब्रह्मांड को दो घटको अर्थात जैवीय व अजैवीय  में बांटा गया है। जैवीय घटकों में संपूर्ण जन्तु व  वनस्पतियां आती हैं जबकि अजैवीय घटकों में  मूल रूप से प्रकृति आती है। इन दोनों घटकों की आपस में एक अति विशिष्ट प्रकार की हिस्सेदारी है अर्थात इन दोनों का अस्तित्व, संरक्षण,संवर्धन व विकास एक दूसरे पर आधारित है। दूसरे शब्दों में एक घटक का अस्तित्व दूसरे घटक के अस्तित्व पर, एक का संरक्षण दूसरे के संरक्षण पर,एक का संवर्धन दूसरे के संवर्धन पर,एक का विकास दूसरे के विकास पर निर्भर है। ऐसा हो पाना असंभव है एक घटक के विनाश होने पर दूसरे घटक का  विकास हो।   इन घटकों को खुशहाल, संपन्न,समृद्ध होने की  शुभकामनाओं के छांव में ही हम खुशहाल,संपन्न व समृद्ध हों सकेंगे । प्रकृति पांच महा भूतों क्षिति, जल, पावक,गगन, व समीर से निर्मित है अतः हमें प्रकृति के प्रत्येक घटक को मंगलमय होने की कामना के साथ-साथ उस दिशा में प्रयास भी करना होगा। पृथ्वी को मंगलमय करने के लिए उसे उसके आभूषणों से सजाना-संवारना होगा। पृथ्वी के आभूषण वृक्ष माने गए कहावत है कि वृक्ष धरा के भूषण हैं दूर करते प्रदूषण हैं। इन आभूषणों की निर्धारित मात्रा अर्थात 33% को भी हमें बरकरार रखना होगा। निश्चय ही अगर  इनकी मात्रा 33% रहेगी तो हमारी प्रकृति  संतुलित व समृद्ध  रहेगी एवं वायुमंडल  में प्राणवायु की मानक मात्रा,21%, पायी जाएगी। पृथ्वी के महत्व को लेकर ही प्रत्येक वर्ष की 22 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। प्रकृति के दूसरे घटक जल के मंगलमय की कामना करने के लिए उसकी मात्रा व उसकी गुणवत्ता को बनाए रखना होगा ।  जल की मात्रा को संतुलित करने के लिए रिचार्ज व डिस्चार्ज की क्रिया को संतुलित रखना होगा। वर्तमान में जल का डिस्चार्ज ज्यादा होने से जल स्तर गिर रहा है ।अत:हमें जल के रिचार्ज हेतु प्रयास करने होंगे तथा इस प्रयास में हमें जल का संग्रहण व  संचयन करना होगा। जल संग्रहण व संचयन हेतु  क्रमश: वनो व  पर्वतों का संरक्षण, संवर्धन व  विकास करना होगा। यदि हमारे जंगल  विकसित होंगे तो  वे  वर्षा जल का अधिकाधिक संग्रहण करेंगे। इसी प्रकार से अगर हमारे पर्वत विकसित होंगे तो वे वर्षा जल का अधिकाधिक संचयन करेंगे । वनो एवं  पर्वतों की महत्ता व जागरूकता को लेकर प्रत्येक वर्ष 21 मार्च व 11 दिसंबर को क्रमश:अंतरराष्ट्रीय वन दिवस व अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है । उक्त दिवसों पर वनो व पर्वतों के संरक्षण व संवर्धन का संकल्प लोग लेते हैं ।भूजल की मात्रा बढ़ाने के लिए हमें जल के रिचार्ज पर ज्यादा ध्यान देना होगा हमको जगह-जगह पर वर्षा जल संग्रहण के यंत्र लगाने होंगे एवं जल संभरण (वाटर शेड)के कार्यक्रम संपन्न करने होंगे। जल निकायों के प्रति भी मानव की संजीदगी अति आवश्यक है। हम जल का संरक्षण करें उसका संवर्धन करें एवं उसमें किसी भी प्रकार के प्रदूषक न डालें और न ही उसमें प्रदूषित जल छोड़ें। जिस प्रकार से हमको अपनी पानी की बोतल की चिंता रहती है उसी प्रकार से हमको अपने सतही एवं भूजल निकायों के भी चिंताओं करनी होगी। प्रकृति का तीसरा अंग पावक या ऊर्जा है इसके मंगलमय  होने  की  भी हमें भी कामना करनी होगी क्योंकि विश्व का प्रत्येक कार्य ऊर्जा के द्वारा ही होता है। वस्तुत:ऊर्जा परंपरागत और गैर- परंपरागत स्रोतों से प्राप्त होती है। हालांकि वर्तमान में हम परंपरागत स्रोतों से ही ऊर्जा लेने के आदी हो चुके हैं। इन परंपरागत स्रोतों में मुख्यत: जीवाश्म ईंधन अर्थात  कोयला, प्राकृतिक तेल एवं प्राकृतिक गैस आती है लेकिन परंपरागत स्रोतों की संसाधनों की मात्रा सीमित होने से इनका उपयोग हम लगातार बहुत वर्षों तक नहीं कर सकते। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि आगामी 150 वर्षों में पारंपरिक ऊर्जा स्रोत अर्थात जीवाश्म ईंधन पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे क्योंकि ये अनवीनीकरणीय प्रकृति के होते हैं अर्थात इनका निर्माण लाखों वर्षों में होता है। इसी कारण इनको अनवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के अंतर्गत रखा गया है। ऊर्जा के दूसरे स्रोत जो कि आज हमारी परंपरा में नहीं है गैर परंपरागत स्रोत कहलाते हैं। इन स्रोतों की विशिष्टता यह है कि यह सभी नवीकरणीय  हैं अर्थात इनका नवीनीकरण लगातार होता रहता है। फलत: इनकी मात्रा हमको चिरकाल तक सतत प्राप्त होती रहेगी, अत: हमको इनकी तरफ अब चलना होगा गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में मुख्य रूप से सौर ऊर्जा,पवन ऊर्जा, सागर ऊर्जा, इत्यादि  आती हैं पुनश्च ऊर्जा के  ये स्रोत किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं करते  गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की महत्ता को वैश्विक स्तर पर लाने के लिए एवं जन जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष की 22 अक्टूबर को विश्व ऊर्जा दिवस मनाया जाता है। प्रकृति का चौथा घटक गगन जिसमें आसमान या वायुमंडल आता है। वायु मंडल में मुख्य रूप से वर्तमान में समस्या ओजोन परत की है वस्तुतः अन्तरिक्ष से आने वाली पराबैंगनी किरणों को रोकने के लिए प्रकृति ने ओजोन की एक परत हमको रक्षा कवच के रूप में दी है किंतु आज वातानुकूलित संयंत्रो, रेफ्रिजेरेटर, इत्यादि के बढ़ते उपयोग से क्लोरो फ्लोरो कार्बन की मात्रा वायुमंडल में लगातार बढ़ रही है ।इसके साथ  जीवाश्म ईंधनो  का अन्धाधुंध प्रयोग हमारे परिवहन तंत्र में हो रहा है। अतः वायुमंडल में हाइड्रोकार्बन तथा मीथेन भी पहुंच रहे है ।ये तीनों ओजोन से क्रिया कर उसको विघटित कर देते हैं, फलत: हमारा ओजोन का रक्षा कवच कई जगह से कमजोर हो रहा है ।इसी को हम लोग कहते हैं ओजोन  छिद्रीकरण हो रहा है। ओजोन परत में छिद्र हो जाने से सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर आएंगी एवं पृथ्वी पर उपस्थित जीवो में त्वचा कैंसर इत्यादि गंभीर बीमारियां देंगी । इसलिए हमको अपने गगन को सुरक्षित रखने के लिए ओजोन परत को संरक्षित व संवर्धित करना होगा ।इसके लिए हमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन, मेथेन एवं हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन सीमित मात्रा में करना होगा। गगन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य 20 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय  गगन दिवस मनाया जाता है। प्रकृति का अंतिम घटक वायु है और इस वायु को मंगलमय रखने के लिए हम को उसकी गुणवत्ता को बरकरार रखना होगा। जैसा कि विदित है कि हमारे वायुमंडल में लगभग 78% नाइट्रोजन,21% ऑक्सीजन या प्राणवायु, 0.9% आर्गन,कार्बन डाइआक्साइड एवं अन्य  गैसें पाई जाती हैं। अगर हम वायुमंडल में ऑक्सीजन के 21% की बात करते हैं तो यह तभी यथार्थ होती है जब इस प्रकृति में जंगलों का प्रतिशत 33 हो। आज हवा में मुख्य रूप से पांच वायु प्रदूषक की मात्रा लगातार बढ़ रही है यह पांच प्रदूषक हैं कार्बन,नाइट्रोजन व सल्फर के विभिन्न आक्साइड तथा निलंबित पार्टिकुलेट मैटर या एस पीएम ।उक्त गैसियस ऑक्साइड वातावरण में बढ़ जाने से यह अम्लीय वर्षा को जन्म देते हैं यदि अम्लीय वर्षा पृथ्वी पर आती है तो हमारी ऐतिहासिक इमारतें, वनस्पतियां, इत्यादि नष्ट हो सकती है। पुन: कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा वायुमंडल में बढ़ जाने से ग्रीन हाउस प्रभाव भी परिलक्षित होने लगता है इस प्रभाव के कारण सूर्य से आने वाली किरणें पृथ्वी पर आ तो जाती हैं किंतु जब वह वापस लौटने लगती हैं तो उनको वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी को वापस भेज देती है और इस तरह इस तरह से लगातार पृथ्वी का तापमान बढ़ता जाता है । यदि हमारे वातावरण का तापमान बढ़ता गया तो यह वैश्विक उष्णता को जन्म देगा इसके कारण धुर्वों पर जमी बर्फ पिघल जाएगी एवं समुद्र स्तर बढ़ जाएगा तथा समुद्र के पास स्थित देश व शहर जलमग्न हो सकते हैं। अतः संक्षेप में अगर हमको नववर्ष को मंगलमय बनाना है तो उसके साथ ही हमको अपनी प्रकृति को भी मंगलमय बनाना होगा एवं उसके  प्रत्येक घटक को मंगलमय होने की शुभकामना  देने के साथ उस दिशा में  सार्थक प्रयास भी करने होंगे। यह प्रयास तब ज्यादा प्रभावी होंगे जब यह जागरूकता जन-जन में चली जाए। रामचरितमानस में आया हुआ है कि रामचरितमानस के सभी पात्र जैसे मां पार्वती, राजा जनक,राजा दशरथ, प्रभु राम,  ऋषि बाल्मीक,शबरी इत्यादि सभी प्रकृति के प्रति अत्यंत जागरूक थे तभी उनके काल में प्रकृति का भरपूर विकास हुआ।बाल्मीकि के आश्रम के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है: रामदीख मुनि बास सुहावन ।सुंदर गिरि काननु जल पावन।। शबरी के लिए आया है ,पंपा नाम सुभग गंभीरा। संत हृदय जस निर्मल नीरा।। राम के वास को लेकर आया हुआ है  कि, जब ते राम कीन्ह तहं बासा । सुखी भए मुनि बीती त्रासा।।  राम राज्य के लिए आया हुआ है कि, उत्तर दिशि सरजू बह  निर्मल जल गंभीर। बांधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर।। स्पष्ट है कि ये सभी के सभी प्रकृति के प्रति अति जागरूक थे तभी तो हमारी प्रकृति खुशहाल थी और हम भी खुशहाल थे। अत:हमको  मानव  के सतत विकास के लिए यह प्रयास करना पड़ेगा कि हमारी प्रकृति का  भी सतत विकास हो क्योंकि प्रकृति के सतत विकास पर मानव का सतत विकास  निर्भर है।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०

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