ग्रामोदय विश्वविद्यालय में कोल जनजातीय देवलोक का आयोजन
1 min readचित्रकूट- कोल जनजाति की आध्यात्मिक मान्यताओं, प्रतीकों, अनुष्ठान पद्धतियों, देवी-दवे ताओं, तीज-त्योहारों, संस्कार पद्धतियों और लोक मान्यताओं पर गहन गम्भीर विचार-विमर्श के गौरवशाली उद्देश्य को लेकर आज जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा कोल जनजातीय देवलोक शीर्षक से एक शोध संगोष्ठी का आयोजन सी.एम.सी.एल.डी.पीसभागार, ग्रामोदय विश्वविद्यालय में किया गया। शोध संगोष्ठी का शुभारम्भ ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भरत मिश्रा ने किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री बाबलूाल दाहिया और मध्यप्रदेश शासन के प्रतिनिधि के रूप में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी भोपाल के निदेशक डॉ धर्मेन्द्र पारे उपस्थित थे।
शुभारम्भ व्याख्यान मंे कुलपति प्रोफेसर भरत मिश्रा ने कहा कि जनजातीय बन्धु, रामायण और महाभारत काल से ही युग नायकांे के साथ मिलकर राष्ट्र की उन्नति में महत्वपणर््ूा योगदान देते रहे हैं। जनजातियों का परम्परागत स्वरूप अक्षुण्य रहे और नवीन सुविधाओं से उनके जीवन की सहजता बढ़े, इसका प्रयास होना चाहिए। श्रद्धेय नानाजी के चिन्तन का उल्लेख करते हुए प्रो मिश्रा ने कहा कि हमें यह दम्भ नहीं होना चाहिए कि हम उन्हें सिखा रहे हैं, बल्कि उनसे सीखकर हम अपनी बहुत सी परेशानियों का निराकरण कर सकते हैं। प्रो. मिश्रा ने बताया कि महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री मंगूभाई पटेल की प्रेरणा से आस-पास की जनजातियों के सर्वागीण विकास के लिए ग्रामोदय विश्वविद्यालय प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि कोल मवासी जनजाति बहुल समीपवर्ती मोहकमगढ़ गांव में विश्वविद्यालय ने उनके सर्वांगीण विकास के साथ उनकी परम्पराओं, मान्यताओं को सहेजने के लिए भी उपाय सुनिश्चित किये हैं। ग्रामोदय विश्वविद्यालय और कोल बंधुओं का वैचारिक आदान-प्रदान अब एक नियमित गतिविधि बनता जा रहा है।
विषय परिवर्तन करते हुए अकादमी के निदेशक डॉ धर्मेन्द्र पारे ने कहा कि अकादमी की ओर से जनजातियों पर आयोजित शोध संगोष्ठियों की श्रृंखला का यह तीसरा आयोजन है। इससे पूर्व बैगा जनजातीय देवलोक का आयोजन अमरकंटक जनजातीय विश्वविद्यालय के साथ मिलकर और सहारिया जनजातीय देवलोक का आयोजन जीवाजी विश्वविद्यालय के सहयोग से हुआ है। उन्होंने बताया अकादमी का प्रयास है कि जनजातियों की लुप्तप्राय हो रही संस्कृति और उनके विराट सांस्कृतिक, पुरातात्विक ज्ञान को अकादमिक संस्थानों के साथ मिलकर संजोया जाये। दस्तावेजीकरण की इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालयांे के शोध छात्रों, जनजातीय जीवन के विशेषज्ञों और जनजातियों में रूचि रखने वाले व्यक्ति और संस्थायें इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने कहा कि जनजातीय लोगों के ज्ञान और अनुभव को संजोकर रखना बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनकी परम्परायंे और विशिष्टतायें धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं। भारत में जनजातियों की बहुलता जिन राज्यांे में है उनमंे प्रमुख मध्यप्रदेश भी है। अतः अकादमी और विश्वविद्यालय द्वारा मिलकर जो प्रयास किया जा रहा है, वह कोल जाति के न केवल देवलोक के बारे में बल्कि उनकी पूरी जीवनशैली के बारे मंे लोगों को और अधिक जानने-समझने के लिए प्रेरित करेगा।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय की ओर से कार्यक्रम में संयोजन और मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ नीलम चौरे ने अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि चित्रकूट की महिमा अगर राम के गान बिना पूरी नहीं होती तो कोल जनजाति को उनको दिये निःस्वार्थ प्रेम और सहयागे के बिना अधूरी ही रहेगी। उन्होंने कोल जनजाति के देवलाके संबंधी तथ्यों के वैज्ञानिक अभिलेखीकरण में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि इस दिशा में प्रदेश सरकार और अकादमी को ग्रामोदय विश्वविद्यालय का पूरा समर्थन और सहयोग मिलेगा।
कार्यक्रम का प्रारम्भ उषा देवी कोल के मंगलगान से हुआ। इस दौरान जनजातीय सुरक्षा समिति के जिला समन्वयक मदन कोल और दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ अभय महाजन ने शुभारम्भ सत्र में मौजूद रहे। जनसंचार वैज्ञानिक प्रो. वीरेन्द्र कुमार व्यास ने संचालन किया। इस अवसर पर अकादमी के निदेशक डॉ धमेन्द्र पारे ने जनजातीय देवलोक संबंधी पुस्तकों का सेट कुलपति प्रो. भरत मिश्र को भेंट किया। मंच पर उपस्थित समस्त अतिथियों को प्रतीक चिन्ह् भेंट किये गये।
उद्घाटन सत्र के बाद सम्पन्न अकादमिक सत्रों में शोध पत्रांे की प्रस्तुति और विचार-विमर्श हुए। प्रथम अकादमिक सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री बाबलू ाल दाहिया ने की। मुख्य वक्ता डॉ भुवनेश्वर दुबे थे। सत्र संचालन डॉ नीलम चौरे ने किया। इस सत्र मंे डॉ कुसुम सिंह, डॉ अजय आर. चौरे, सुश्री देवांशी, प्रसन्ना और सिद्धार्थ ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। द्वितीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ मुकेश कुमार मिश्रा ने की। मुख्य वक्ता डॉ पी.सी. लाल यादव थे। संचालन परिषद् के प्रसन्ना ने किया। इस सत्र में डॉ नीलम चौरे, राम कुमार वर्मा, रूद्र माझी, अभिषेक, ओम यामिनी और अनुपम दाहिया ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। परिषद् की ओर से समस्त प्रतिभागीगणांे को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। वक्ताओं को स्मृति चिन्ह् भेंट किये गये। शोध संगोष्ठी की प्रभावशीलता के मापन के लिए फीडबैक भी लिया गया।
जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०