May 2, 2024

वाल्मीकि रामायण रामकथा,श्री तुलसी पीठ में सम्पन्न हुई

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चित्रकूट- जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य का जन्मोत्सव उनके शिष्यों द्वारा धूम-धाम से मनाया जाता है। इस वर्ष कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए इस उत्सव को सीमित रखा गया है। परंतु प्रतिवर्ष होने वाली रामकथा को पूर्ववत रखा गया है। कोविद-19 नियमों का पालन करते हुए मुंबई हाईकोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता लालजी केवला प्रसाद त्रिपाठी की यजमानी में श्री तुलसी पीठ के मानस हाल में वाल्मीकि रामायण पर आधारित 9 सत्रीय रामकथा की आज पूर्णाहुति हुई। जगद्गुरू द्वारा 12 से 20 जनवरी तक यह कथा सम्पन्न की गई।
          आज कथा के 9 वें सत्र का आरंभ श्रद्धालुओं की प्रश्नावली से हुआ। श्रद्धालुओं ने जगद्गुरू से शास्त्रीय जिज्ञाशा से संबन्धित प्रश्न पूछे और जगद्गुरू ने अपने चिर परिचित आत्मविश्वास के साथ उन प्रश्नों का उत्तर दिया। वर्धा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रकाश नारायण त्रिपाठी के प्रश्न कि श्रीराम चित्रकूट में क्यों बारह वर्ष ही रहे? के जवाब में जगद्गुरू ने कहा कि काम के 12 स्थान होते हैं। 10 इंद्रियाँ और मन तथा बुद्धि। इसलिए श्रीराम ने 12 वर्ष तक चित्रकूट रहकर प्रतिवर्ष उन स्थानों पर निवास किया। इस प्रकार के अन्य प्रश्नों का भी उन्होने दिलचस्प उत्तर दिया।
          कथा का प्रारम्भ हनुमान जी द्वारा माता सीता की सूचना देने से हुई। सीता की सूचना पर विह्वल होकर श्रीराम ने हनुमान को गले लगाकर अपना सर्वस्व सौप दिया। इसके पश्चात जगद्गुरू रावण-विभीषण संवाद पर रुके। उन्होने बताया कि विभीषण द्वारा श्रीराम के 6 दैवीय गुण गिनाए जाने पर रावण ने उन्हें 6 लात मारे। इसके बाद उन्होने विभीषण द्वारा श्री राम से निवेदन तथा शिविर से आई भिन्न-भिन्न प्रतिकृया पर उनका मन रमा। उन्होने श्रोताओं को एक दिलचस्प जानकारी दी कि महर्षि वाल्मीकि ने ही भारतीय परंपरा में ‘शरणागत’ की धारणा का बीजवपन किया।
          जगद्गुरू ने श्रीराम और श्रीकृष्ण प्रमुख वैषम्य पर भी प्रकाश डालते हुए बताया कि श्रीकृष्ण भविष्य की बात करते हैं लेकिन प्रभु श्रीराम सदैव वर्तमान की बात करते हैं। उन्होने तीन दिन तक उपवास रखकर समुद्र से मार्ग प्रदान करने का निवेदन किया। निवेदन की अनदेखी तथा अवमूल्यन किए जाने पर उन्होने अपने दुर्लभ क्रोध का प्रदर्शन किया। जगद्गुरू ने युद्ध का भी सजीव वर्णन किया। भावों के अनुरूप उनकी वाणी में आने वाले उतार-चढ़ाव में सभी श्रद्धालु बहते रहे।
          अंत में जगद्गुरू ने मंच पर राम के राज्याभिषेक के दौरान उनकी आरती उतारी। उनके उत्तराधिकारी आचार्य रामचन्द्र दास ने प्रतिदिन की ही भांति कथा का उपसंहार प्रस्तुत किया। यजमान श्री लालजी केवला प्रसाद त्रिपाठी ने सभी का धन्यवाद ज्ञपित किया तथा दो वर्ष पश्चात प्रस्तावित गुरु जी के 75 वें जन्मोत्सव के लिए सभी गुरूभाइयों से प्राण-प्रण से जुट जाने का आह्वान किया।
          इस दौरान कथा में जेआरएचयू के कुलसचिव श्री आरपी मिश्र, लेखाधिकारी न्यायबन्धु गोयल, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी डॉ मनोज पांडे, प्रज्ञाचक्षु विद्यालय की प्रधानाचार्या सुश्री निर्मला वैष्णव, उमेश श्रीवास्तव, विपुल प्रकाश शुक्ल, मानस शुक्ल, विनय, गोविंद, उत्सव, दीनानाथ दास, मदनमोहन दास, आञ्जनेय दास, वैभव, विशंभर, हिमांशु त्रिपाठी, कश्यप, पूर्णेंदू तिवारी आदि उपस्थित रहे। इस 9 दिवसीय कथा की सम्पूर्ण जानकारी श्रीतुलसी पीठ से विवेक उपाध्याय ने दी।
     
 
जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०

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