ग्रामोदय पथ पर आगे बढ़ता एक विश्वविद्यालय : प्रो नंद लाल मिश्रा
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चित्रकूट- महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो नंद लाल मिश्रा के अनुसार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सदभावना के अनुरूप केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित ग्रामोदय से राष्ट्रोदय अभियान को यथार्थ का धरातल देने के लिए प्रख्यात समाजसेवी भारतरत्न राष्ट्रऋषि नाना जी देशमुख के जीवन काल में ही उनके द्वारा परिकल्पित और क्रियान्वित ग्रामोदय शिक्षा को जोड़ा जाना होगा।
भारत रत्न राष्ट्र-ऋषि नाना जी देशमुख ने चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि मानी थी।भगवान श्रीराम को अपने वनवास का समय काटने तथा यंहां पर फैले आतंक को समाप्त करने के लिए चित्रकूट जाने का दिग्दर्शन किया गया था।इसका प्रमुख कारण अन्य जगहों से कम संपर्क तथा एकांत का अधिक होना था।लगभग 30 वर्ष पूर्व जब मैंने चित्रकूट का दर्शन किया था तो उस समय चित्रकूट लगभग वैसे ही था जैसी मन मे कल्पना थी।सड़कों का अभाव यातायात के साधनों का सर्वथा अभाव विद्युत व्यवस्था लगभग नही के बराबर थी।पेय जल था ही नही।कृषि की प्राचीनता और अमावस के मेले पर निर्भर यहां का जीवन एक अलग कहानी बयां करता था।चित्रकूट धाम कर्वी से रामघाट आने में घंटो लगा करता था।टेलीफोन की व्यवस्था थी ही नही।संचार व्यवस्था अत्यंत कमजोर थी।जीविकोपार्जन की स्थायी व्यवस्था नही थी।हां, चित्रकूट राम मय जरूर था।अद्भुत प्राकृतिक नजारा था।सती अनुसूया आश्रम हो गुप्त गोदावरी की गुफा हो हनुमान धारा हो स्फटिक शिला हो राम शैय्या हो भरत कूप हो ।क्या कहने इन नजारों का।चारो तरफ जंगल हरे भरे पहाड़ श्री कामदा नाथ जी का धनुषाकार पर्वत उनकी परिक्रमा कल कल करती मंदाकिनी सभी ने नाना जी को अपनी तरफ आकर्षित किया।अंततः नानाजी इन्ही के हो कर रह गए तथा उनका मन यहीं रम गया।यहां की सामाजिक -आर्थिक अव्यवस्था ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया।उन्हें भी एक ऐसे जगह की तलाश थी जहां शांतिपूर्वक अपने सपनो को मूर्त रूप दे सकें।उन्हें वह जगह प्रभु राम की कृपा से मिल गयी थी।परिवर्तन के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है।अपने दीर्घकालिक अनुभवों की नींव पर नाना जी ने यहां के लोगों को साथ लेकर दीन दयाल शोध संस्थान की स्थापना की।जिसके संचालन में स्थानीय साधु-संतों का अप्रतिम योगदान था।दीन दयाल शोध संस्थान के एक प्रकल्प के रूप में ग्रामोदय शिक्षा के लिए ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा के कर कमलों ग्रामोदय विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी गयी। कालांतर में मध्यप्रदेश सरकार ने चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाम के साथ महात्मा गांधी का जोड़ कर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय कर दिया गया।इस विश्वविद्यालय के संस्थापक और परिकल्पक नाना जी का मानना था कि पूज्य बापू ही इस विश्वविद्यालय के शाश्वत प्रेरणा श्रोत है।महात्मा गांधी व नाना जी के विशाल चिंतन को तो विस्तार से यहां देना संभव नही है पर यह सत्य है कि उनके विचारों पर आधारित ग्रामोदय विश्वविद्यालय निःसंदेह अपनी यात्रा पर आगे बढ़ा है।चित्रकूट बदल गया।अब वह वो नही रहा जो 30 वर्ष पहले था।रात में अब रास्ते रुकते नही चलते रहते हैं।लगभग सभी आवश्यक सामग्री मिल जाती है।ग्रामोदय ने यहां नाना प्रकार के प्रयोग किये।कृषि का स्वरूप बदल गया।जीविकोपार्जन अब अमावस्या पर नही टिका है।अनेको रास्ते खुल गए हैं।आत्मनिर्भरता धीरे धीरे ही सही आ रही है।ग्रामोदय विश्वविद्यालय की संकल्पना को सरकार को भी समझना चाहिए , क्योंकि ग्रामोदय की भूमिका यहां के विकास में मेरुदंड है।
जावेद मोहम्मद विशेष सवांददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०