September 21, 2024
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भोपाल- कोरोना मरीजों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का माध्यम बन रहा – मिशन समर्पण।
बीते अप्रैल में जब कोरोना की दूसरी वेव ने अपना कहर ढाया तब प्रदेश में युवाओं के एक समूह ने कोरोना पीड़ितों का हाथ थाम उनका हौसला बनाए रखने का नेक काम शुरू किया। धीरे धीरे ये मिशन आज प्रदेश के हर जिले में लगभग 120 वालंटियर्स की मदद से सक्रिय रूप से काम कर रहा है। ये युवा अपनी रुचि व योग्यता के अनुसार मिशन समर्पण की विभिन्न टीमों से जुड़ें हैं।मिशन समर्पण की शुरुआत करने वाले मेंटर राकेश नागर बताते है कि जब अप्रैल माह में वे कोरोना से संक्रमित हुए तो उन्होंने अपने आसपास कई प्रकार की समस्याओं को देखा। जिसमें लोगों में भावनात्मक सहयोग की कमी, पर्याप्त जानकारी का अभाव, जागरूकता की कमी, अस्पताल आदि में दवाइयों व बेड की उपलब्धता की समस्या से उन्हें परेशान होना पड़ा और इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इन कमियों को दूर करने के लिए उन्होंने इसमें अपने साथियों को जोड़ना प्रारंभ किया। फिर क्या था ” मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।”राकेश आगे बताते हैं कि संक्रमण के दौरान ऑक्सिजन की कमी के कारण जब मैं सीहोर के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती हुआ, तब बहुत डरा हुआ था। उस वक्त हर जगह हालात ही ऐसे थे की अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी भयग्रस्त हो जाए। तब मुझे राउंड पर आए कोविड वार्ड के ही एक डॉक्टर ने गले लगाते हुए कहा कि अब तुम मेरे पास आ गए हो, देखना जल्दी ही एकदम ठीक हो जाओगे। डॉक्टर द्वारा दिए गए इस एक एहसास ने मेरे अंदर इतनी ऊर्जा दी की मैं उसे शब्दों में नहीं बयां कर सकता और इस एक घटना के बाद से धीरे धीरे मेरा डर भी छू मंतर हो गया। सुनने में ये बेहद मामूली बात लगे लेकिन जिस स्थिती में मुझे वो जादू की झप्पी मिली उसके बाद मुझमें ऊर्जा की एक लहर दौड़ गई थी। इसी से मुझे समझ आया कि इस आपदा से लड़ने के लिए भावनात्मक रूप से मजबूत होना बहुत ज़रूरी है। साथ ही साथ पेशेंट को ये एहसास करवाना की वो वायरस से अकेला नहीं लड़ रहा है। उसके साथ डॉक्टर्स भी मैदान में जुटे हुए हैं। समर्पित रूप से कार्य करने वाला ये युवा समूह आज ‘मिशन समर्पण’ के रूप में हमारे बीच उम्मीद का एक नन्हा पौधा बन कर उग आया है। इस पौधे की कोपलों को हमने अलग अलग नाम दिए हैं – इमोशनल सपोर्ट, जागरूकता, वैक्सीनेशन अवेयरनेस, इमरजेंसी सर्विसेज, मेडिकल टीम, फूड एंड मेडिसिन आदि।इमोशनल सपोर्ट टीम का काम कोरोना पॉजिटिव मरीजों से बात कर उन्हें आत्मीयता का एहसास करवाना, उनके अंदर आपदा से लड़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति पैदा करना व उनके 14 दिनों के अनुभवों को जानना रहता है। टीम बताती है कि कई मरीज इस कदर डरे होते हैं कि उन्हें सकारात्मकता की ओर ले जाने में हमें दो से अधिक बार बातचीत की ज़रूरत होती है। ये प्रेम व स्नेह पूर्ण व्यवहार बेहद कमाल की औषधि है। इसी से हम असल सकारात्मकता का प्रसार कर पाते हैं। इस टीम से जुड़ी भोपाल की आकांक्षा राठौर बताती हैं कि हमारा पहला फोकस पेशेंट को सहज महसूस करवाना होता है। विभिन्न जिलों में मौजूद टीमें ये कोशिश करती है कि पेशंट से उसकी क्षेत्रीय भाषा में बात की जाए। जैसे कि मुरैना में भर्ती किसी दादी मां से हमारे वहां के वॉलंटियर बुंदेलखंडी में बात करते हैं। यहां भाषा का जादू काम करता है और इससे पेशेंट सहज महसूस करने लगते हैं। फोन कॉल पर हमारे वालंटियर्स सामने वाले व्यक्ति को अपना चाचा-चाची, दादा- दादी, भाईया-भाभी, मौसी, मामा, दीदी, आदि कह कर संबोधित करते हैं जिससे यह आत्मीय संबंध और मजबूत हो जाते हैं। कॉलिंग के इस सिलसिले में हमें कुछ लोग तो ऐसे भी मिले जो खुद से कॉल करके हमें अपडेट देते हैं कि हम ठीक हैं, या वे जो भी परेशानी मेहसूस कर रहे होते है, उससे हमें अवगत कराते हैं। यहां तक कि जब पेशेंट स्वस्थ होकर घर जा रहा होता है तब वो खुद से ही हमें कॉल कर के कहते हैं कि वे अब घर जा रहे हैं। उनका ये भरोसा ही हमें एक टीम के रूप में और बेहतर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
दूसरी तरफ जागरूकता टीम गांव में व्यापक तरीके से पैर पसार चुके कोरोना को खत्म करने के लिए कार्यक्रम चला रही है। जिसमें वे ग्रामीण स्तर में रहने वाले युवा वालेंटियर्स, आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जिसमें वे ग्रामीण स्तर में रहने वाले युवा वालेंटियर्स, आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम, गांव के स्थानीय डॉक्टरों आदि के माध्यम से मिलकर जागरूकता कार्यक्रम, उचित खानपान, दवाइयों का वितरण एवं मास्क का प्रयोग, साबुन का प्रयोग, स्वच्छता आदि को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रहे हैं। इस कार्य के बारे में रीवा से इस टीम समर्पण के साथी अमन सिंह बताते हैं कि यह कार्य मिशन समर्पण के ग्रामीण स्तर पर मौजूद वालंटियर्स के द्वारा किया जा रहा है जो स्थानीय स्तर की समस्याओं को भलीभांति समझते हैं और उनका समाधान स्थानीय स्तर पर ही करने का प्रयास करते हैं। कुछ युवाओं की टोली वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए वैक्सीनेशन अवेयरनेस कार्यक्रम चला रही है। इसमें टीम के सदस्य अपने पड़ोसियों, स्कूल – कॉलेज के मित्रों, एवं अपने परिचितों को निरंतर वैक्सिंग लगवाने के बारे में अवेयर करने के साथ साथ उनकी टीके से जुड़ी भ्रांतियों को भी दूर कर रहे हैं। छिंदवाड़ा से प्रतिभा जैन का कहना है कि व्यक्ति खुद टीका लगवाने के बाद अगर अपने किसी परिचित को वैक्सीनेशन के बारे में अवेयर करता है तो सामने वाले पर उसका एक अच्छा प्रभाव पड़ता है। जो व्यक्ति टीका लगवा चुके हैं हम उन्हें भी अपनी इस अवेयरनेस ड्राइव में जोड़ लेते हैं और ये फॉर्मूला बेहद कारगर भी साबित हो रहा है। आज तक अकेली प्रतिभा ने ही अपने गांव के तकरीबन 150 लोगों का वैक्सीनेशन रजिस्ट्रेशन करवाया है। अस्पतालों में ऑक्सीजन के कमी से जूझ रहे पेशेंट्स की तादाद से हम सभी वाकिफ हैं। इसी दिशा में काम करने हमने इमरजेंसी सर्विसेज टीम तैयार की है। इस टीम के साथी बेड, वेंटीलेटर, ब्लड, प्लाज्मा आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने में देवदूत बनकर अपनी मदद दे रहे हैं। इस टीम में कार्य करने वाले अधिकांश साथी ऑनलाइन माध्यम से अस्पताल में बेड की उपलब्धता का पता लगाते हैं और मरीज के परिजन को अंतिम समय में होने वाली इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इसी टीम में प्लाज्मा की उपलब्धता पर भी काम किया जा रहा है जो लगातार प्लाज्मा दान हेतु लोगों से संपर्क कर मरीज को एक उम्मीद प्रदान करते हैं।  भोपाल के अजय पटेल बताते हैं कि हमारा यह ग्रुप अस्पताल में एडमिट होने वाले या हो चुके मरीज के परिजन को उत्पन्न होने वाली पैनिक की स्थिति से बचाने में मदद करता है। मिशन समर्पण के साथ एक मेडिकल टीम भी कार्य कर रही है जिसमें विभिन्न डॉक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हैं जो तात्कालिक रूप से ज़रूरी मेडिकल कंसल्टेशन करते हैं। सतना से साथी शैलेश पटेल का कहना है कि आवश्यक सलाह प्रदान कर के हम अस्पतालों पर बढ़ने वाले बोझ को रोक सकते हैं जिससे जरूरतमंद व्यक्ति को अस्पताल में बेड की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है एवं कम प्रभावित मरीज का घर पर ही प्रभावी तरीके से इलाज किया जा सकता है।’डर के आगे जीत है’ को सार्थक करती हुई मिशन समर्पण की एक टीम फील्ड में मुस्तैदी से काम कर रही है। जरुरतमंदो को राशन, खाद्यान्न  की उपलब्धता एवं कोविड मरीजों को दवाईयां, खाना पहुंचाने हेतु बिना किसी डर के फील्ड में अपनी भागीदारी कर रहे हैं। ये हमारे फ्रंटलाइन वर्कर ही हैं जो समुचित एहतियात के साथ फील्ड में बिना डरे उतर जाते हैं। फिर चाहे अस्पताल में किसी को दवाई पहुंचानी हो या फिर कोविड पेशंट के घर खाना। इस काम में हमारी टीम को प्रदेश के विभिन्न सामाजिक संगठनों का साथ भी मिला हुआ है। सीधी से  विनोद जायसवाल का कहना है कि जैसे ही कहीं से ज़रूरत की कोई रिक्वेस्ट आती है तो हम तुरंत स्थानीय संगठन से संपर्क करते हैं और उस व्यक्ति को सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं। इसमें हमें कम समय में स्मार्ट निर्णय लेने होते हैं इसलिए ये फील्ड वर्क चैलेंजिंग तो है पर किसी ज़रूरतमंद की मदद करने से हमें जो खुशी मिलती है उसके आगे कोई चैलेंज कहां टीक पता है।
हर पौधे को एक दिन विशाल वृक्ष बनना है। हम भी अपने इस पौधे से ऐसे ही उम्मीद करते हैं। मिशन समर्पण अपनी विभिन्न कोपलों के माध्यम से मानव सेवा के कामों में लगा हुआ है। अगर आपको या आपके किसी परिजन को किसी भी प्रकार के इमोशनल सपोर्ट, मेडिकल इमरजेंसी, खाद्यान्न, राशन आदि की आवश्यकता हो तो मिशन समर्पण के इस नंबर +918602981662 पर व्हाट्सएप के ज़रिए से संपर्क किया जा सकता है। हमसे जुड़ने के लिए भी आप   +919893319558  नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।

भारत विमर्श भोपाल म०प्र०

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