सचमुच 56″ का सीना है तो कभी सवाल करने की भी खुली छूट दे दो
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अखिलेश कुमार झा, वरिष्ठ पत्रकार
विचार : जब कभी हमारे देश पर आतंकी हमला होता है तो एक घिसा पिटा डॉयलौग सुनने को मिलता है कि हम करारा जबाब देंगे। इस प्रकार का बयान खादी वाले गुण्डे ही देते हैं। सेना हमेशा अपना काम बहादुरी के साथ करती है,सरकार चाहे किसी की भी हो।
पुलवामा हमले के बाद भी वही सब होता दिख रहा है जो इससे पहले के हमलों के बाद हुआ था। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि सेना को ये दिल्ली वाले सफेदपोश लाचार बनाने की कोशिश करता है। आखिर कब तक केवल मुँहतोड़ जबाब देने की ही खुली छूट देंगे साहब। यदि सचमुच 56″ का सीना है तो कभी सवाल करने की भी खुली छूट दे दो। क्यों किसी हमले के बाद कार्रवाई की जाने की कोशिश करते हैं। क्यों न पहला आक्रमण भारत की ओर से होता? रक्षा मंत्री बी.के. सिंह को क्यों नहीं बनाया गया जो सेना से ही रिटायर्ड हैं देश की सीमा रक्षा के सारे गुर जानते हैं? क्यों खुफिया सूचना की अनदेखी की गई? हवाई मार्ग से सेना को सुरक्षित पहुँचाने के लिए सेना की ओर से दी गई चिट्ठी के बावजूद सरकार ने विमान क्यों नहीं उपलब्ध करवाया?
यदि सड़क मार्ग से ही जाना पड़ा तो बख्तरबन्द गाड़ियों की उप्लब्धि क्यों सुनिश्चित नहीं की गई? इस तरह के सैकड़ों यक्ष प्रश्न हैं। सवाल उसी से पूछा जाएगा जो सत्ता में रहेगा।
किसी घटना के घटित होने के बाद जिस खुली छूट की बात कर रहे हैं न आप वो खुली छूट सेना को सालोंभर के लिए और चौबीस घंटे के लिए दे दो और आप आराम करो। इस पुलवामा हमले का जितना बड़ा अपराधी पाकिस्तान और जैश-ए-मुहम्मद है उतना ही बड़ा दोषी वह लीडर भी है जो सेना को अपने तरीक़े से काम करने में अड़ंगा लगाते हैं। सत्ता के लालची गिद्धों तुम इतने गिर चुके हो कि शहीद के ताबूत मे घोटाले करते वक्त तुम्हारी रूह नहीं काँपती थी।
हमें किसी दल से मतलब नहीं है, केवल देश की उन्नति और सुरक्षा सर्वोपरि है हमारे लिए। सरकार जो भी कदम देशहित में उठाए उसमें हम सरकार के साथ खड़े हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम सवाल उठाना बन्द कर दें। सवाल तो पूछेंगे और सही अवसर पर उचित सवाल पूछते रहेंगे।
साहब किसी के धैर्य की एक सीमा होती है। चाहे जनता हो या सेना।
मेरा उद्देश्य सिर्फ सत्ता को आइना दिखाने का है।
समाधान की भी कुछ बातें करना चाहता हूँ-
ऐसा नहीं है कि जो मैं सोच रहा हूँ वैसा किसी ने नहीं सोचा होगा।
- पुलवामा में तो लगता है कि सेना को उनके मांग के अनुरूप साधन उपलब्ध न कराकर,खुफिया सूचना की अनदेखी कर इस घटना को एक तरह से आमंत्रित किया गया जो बहुत बड़ी भूल थी।
- जो एकता राजनीतिक दल अभी दिखा रहे हैं काश अन्य देशहित के मुद्दे पड़ कभी कभार दिखाती और पार्टी, सत्ता इससे उपर उठकर भी काम करती।
ये तो बीती बात है। अब आगे क्या हो इस पर भी विचार करना होगा।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब पाकिस्तान से सुधरने की अपेक्षा करना हमेशा हमेशा के लिए त्यागना होगा। - करारा जबाब देने के साथ ही खतरनाक सवाल करने की भी छूट सेनाओं को दे दो सरकार।
- मोस्ट फेबर्ड नेशन का दर्जा छीने हो उसे दुबारा देना मत।
- पाकिस्तान से सारे सम्बन्ध तत्काल प्रभाव से सदा के लिए खत्म करो।
- जो व्यवहार हमारे साथ आतंकिस्तान करता रहा है वही व्यवहार हम भी उसके साथ करें।
- अधिकारिक तौर पर पाकिस्तान को शत्रु घोषित करो।
- देशभक्तों और गद्दारों के बीच अन्तर करना सीखो।
- कभी भी सामने से पहले हमले का इन्तजार नहीं हो बल्कि खुली छूट ये मिले कि हमारी ओर से भी पहला हमला ही ऐसा जोड़दार और विशाल हो कि दुश्मन को सम्हलने का अवसर ही नहीं मिले।
अन्त मे सबसे बड़ी बात 545 भाग्यविधाताओं के लिए–महानुभावों कृपा करके सेना को किसी राजनीति में न घसीटें। ये अपना काम बखूबी जानते हैं। इन शूरवीरों पर हमें नाज है।
हमेशा पूरी आजादी देकर ही सेना को छुट्टा छोड़ दें और विश्वास रखें वे सब कुछ दुरुस्त कर देंगे और अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करेंगें.
अभी का महौल संवेदनशील है, सबसे अनुरोध है कि संयम बनाए रखें अपना काम करते रहें और खबरो पर नजर बनाए रखें।
जय हिन्द।