हनुमान जयंती प्रकटोत्सव पर विशेष स्टोरी
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चित्रकूट– मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन तपस्थली पवित्र नगरी चित्रकूट धाम में अंजनी नंदन श्री हनुमान का एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जिसमे जल की धारा पहाड़ से निकलकर हनुमानजी की बाई भुजा को स्पर्श करते हुए नीचे पाताल में समा जाती है। ऐसे पावन तीर्थ स्थल हनुमान धारा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व देखते ही बनता है।
भारत के तीर्थों में चित्रकूट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है, क्योंकि इसी पवित्र नगरी में भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी की सहायता से श्री राम के अनन्य उपासक गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को प्रभु श्री राम के चित्रकूट धाम में दर्शन हुए थे। ऐसा माना जाता है चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ है। यूं तो देश में श्री हनुमान जी के एक से बढ़कर एक भव्य और दिव्य मंदिर हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट धाम के हनुमान धारा मंदिर की बात ही कुछ निराली है।आज भी यहां हनुमान जी की बाईं भुजा पर लगातार जल गिरता दिखाई देता है। यहां विराजे हनुमान जी की आंखों को देख कर ऐसा लगता है, मानो श्री हनुमान हमें देख कर मुस्कुरा रहे हैं। साथ में भगवान श्री राम का छोटा सा मंदिर भी यहां है। इस धारा का जल हनुमान जी को स्पर्श करता हुआ बहता है, इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। इसके दर्शन से प्रत्येक व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है,साथ ही मनोकामनाओं की भी पूर्ति होती है।
शास्त्रों में ऐसी कथा मिलती है कि श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन श्री हनुमान जी ने भगवान श्री राम से कहा, हे प्रभु लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गर्मी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। इस कारण से मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे कि मैं इससे मुक्ति पा सकूं तब प्रभु श्री राम ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करो हनुमान। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइए। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’’ हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत शृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का 1008 बार पाठ किया। और जैसे ही श्री हनुमान जी का अनुष्ठान पूरा हुआ, ऊपर से जल की एक धारा प्रकट हुई। जिसके पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के नाम से जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है।इस धारा को लोक प्रभाती नदी या पाताल गंगा भी कहते हैं। इस जल का भी बड़ा महत्व बताया गया है, कहते कि पर्वत से निकलने वाले इस जल में अनेक प्रकार के औषधीय गुण है। जिसका सेवन करने मात्र से दमा और शरीर की अन्य गम्भीर बीमारियां ठीक होती है। पर्वत श्रखला से निकलने के बाद कई जड़ी बूटियों के पौधों की जड़ो को स्पर्श करके निकलने वाली इस जलधारा को लोग बड़े ही भक्ति भाव के साथ सेवन करते है, साथ ही इसको अपने घर भी लेकर जाते है, और बीमार व्यक्तियों को इसका निरंतर सेवन करवाते है।
हनुमान धारा के बारे में एक अन्य कहानी यह है, कि लंका में आग लगाने के बाद अपनी पूंछ में लगी आग बुझाने के लिए श्री हनुमान जी इस जगह आए। कहा जाता है कि जब हनुमान जी ने लंका में अपनी पूंछ से आग लगाई थी तब उनकी पूंछ पर भी बहुत जलन हो रही थी। राम राज्य में भगवान श्री राम से हनुमान जी ने विनती की, जिससे कि उनकी जली हुई पूंछ का इलाज हो सके। तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा निकाली। चमत्कारिक पवित्र और ठंडी जल धारा पर्वत से निकल कर हनुमान जी की बाईं भुजा से होते हुए पूंछ को स्नान कराकर नीचे कुंड में चली जाती है। यह जगह विंध्य पर्वत माला की शुरूआत में राम घाट से 4 किलोमीटर दूर है। यहाँ पहुंचने के बाद पहाड़ी पर आपको हनुमान धारा का मंदिर देखने के लिए मिलता है। मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 465 सीढ़ियां या फिर रोपवे के माध्यम से जाया जा सकता है। वैसे रोपवे के माध्यम से केवल हनुमान धारा तक ही पहुंचा जा सकता है।
हनुमान जी के मंदिर के ऊपर सीता जी की रसोई है, जहां पहुंचने के लिए हमे 100 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है सीता रसोई की कथा है कि यहां पर सीता जी ने पांच ऋषियों के लिए खाना बनाया था। और कन्दमूल खिलाये थे बताते है कि चित्रकूट चौरासी कोष परिक्रमा के पांचों क्षेत्र से यहां पर पांच ऋषि पहुंचे थे जिनमें अत्रि ऋषि, अगस्त ऋषि, सुतीक्षण ऋषि, सरभंग ऋषि एवं बाल्मीकि ऋषि यहां पहुंचे थे जिनके लिए माता सीता ने कन्दमूल फल और भोजन बनाया था इसी कारण इस स्थान का नाम सीता रसोई पड़ा, बाद में अब इस स्थान पर उन पांचों ऋषियों की मूर्ति भी बनाई गई है जिसका लोग दर्शन करने से दूर दूर से आते है और कहते है कि तो श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन करने हनुमान धारा पहुंचते है वह सीता रसोई के दर्शन कर भी पुण्य लाभ प्राप्त करते है आपको बहुत सारे मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०