डॉक्टर ने फटकारा मेडिकल स्टोर संचालक को, बीच रोड में लगाई फटकार
1 min readसतना – जबसे जेनेरिक दवाइयों में ब्रांड नेम लिखकर आने लगे तब से पूरे जिले में इन दवाओं का गोरखधंधा जोर पकड़े हुए आलम यह है कि डॉक्टर के परचे में एथिकल दवाइयां लिखी होती हैं और उन परचो को सतना के और जिले के कतिपय मेडिकल स्टोर बड़ी आसानी से जेनेरिक दवाओं में परिवर्तित कर पेशेंट को थमा देते हैं आमतौर पर देखा गया है कि ज्यादातर लोग मेडिकल संबंधित चीजों की जानकारियां नहीं रखते ।आम आदमी को मेडिकल से जुड़ी बहुत सारी बातें जिनमें दवाइयां भी शामिल है के बारे में कुछ भी पता नहीं है और इसी का लाभ यह मेडिकल स्टोर उठाते हैं सतना जिला अस्पताल के सामने दो तीन दुकानें ऐसी हैं जो पूरा दिन इसी काम में लगी रहती है ।यही नहीं इसके अलावा भी हॉस्पिटल चौक या दूसरी डॉक्टरों के क्लीनिक के आसपास भी यही गोरखधंधा बड़े जोर शोर से चल रहा है स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि एथीकल कंपनियां डॉक्टर को कन्वेंस कर कर के परेशान हो जाती है लेकिन मेडिकल स्टोर में उसकी दवाइयां नहीं लिख पाती है
इस काम का ज्यादातर जिम्मा आशा कार्यकर्ताओं ने उठा रखा है देखने में आया है कि आशा कार्यकर्ता जिस भी पेशेंट को दिखाने लाती है उसका पर्चा तो सरकारी अस्पताल में डॉक्टर से लिखवा लेती हैं लेकिन दवाइयां अपनी चिन्हित मेडिकल स्टोरों से दिलवाती है जहां वह लिखी हुई दवाइयों के बदले जेनेरिक की दवाइयां थमा देता है और बदले में आशा कार्यकर्ताओं को प्रति पर्चा 60% का कमीशन मिल जाता है
अभी हालिया एक घटना सतना जिला अस्पताल के सामने हुई जिसमें जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर इस बात से इतना नाराज हुए और अस्वस्थ होने के बावजूद वह उस मेडिकल स्टोर में गए और उसे जमकर फटकार लगाई ।मामला जिला अस्पताल के सामने ओम मेडिकल का है जिसने डॉ शरद दुबे के पर्चे पर लिखी हुई दवाइयों के बदले में पेशेंट को जनरिक दवाइयां थमा दी गईं जब पेशेंट डॉक्टर को दवाइयां चेक कराने गया तो बदली हुई दवाइयों को देखकर डॉक्टर दुबे का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और वह अस्वस्थ होने के बावजूद छड़ी लेकर चलते हुए मेडिकल स्टोर जा पहुंचे और उस दुकान के बाहर जाकर दुकानदार को जमकर लताड़ लगाई डॉक्टर की फटकार के चलते आसपास काफी लोगों का मजमा लग गया बाद में मेडिकल स्टोर वाले द्वारा माफी मांगने के बाद डॉक्टर साहब तो चले गए लेकिन लोगों में बात जरूर कहते पाई गई कि आजकल मेडिकल स्टोर वाले ज्यादा कमाई के चक्कर में मरीजों की जान से खेल रहे हैं यही बात डॉक्टर साहब भी मेडिकल स्टोर वाले को समझा रहे थे कि यदि मेरी लिखी दवाइयों के बदले में तुम दूसरी दवाई दे देते हो और पेशेंट के साथ कुछ हो जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा हमारा सवाल यह नहीं है हमारा सवाल यह है कि जब जिला अस्पताल जैसे इतने बड़े सरकारी महकमे के सामने यह सब खुलेआम हो रहा है तो क्या उस यदि विभाग और हमारे यहां के सीएमएचओ कुछ दिखाई नहीं देता आखिर क्या वजह है कि ऐसे लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं होती यह बड़ा सवाल है जिसका जवाब तो फिलहाल अभी किसी के पास नहीं है लेकिन अगर यही आलम रहा तो एक बात तो निश्चित जान लीजिए किस प्रकार की दवाइयों से कभी किसी के साथ कोई हादसा हो गया तब तो लेने के देने पड़ेंगे तभी शायद लोगों को समझ में आएगा।
अहेश लारिया ब्यूरोचीफ भारत विमर्श सतना म०प्र०