May 7, 2024
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चित्रकूट – गौरव दिवस के अवसर पर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर भरत मिश्र द्वारा चित्रकूट की पवित्र  मंदाकिनी व पयस्वनी नदियों  के किनारों पर  पेड़ लगाने के लिए गए संकल्प के क्रियान्वयन के क्रम में आज   दुर्गा नवमी के अवसर पर प्राध्यापक  प्रो घनश्याम गुप्ता ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग,डॉ. शिव शंकर सिंह उद्यानिकी विभाग , डॉ. वीरेंद्र उपाध्याय गणित विभाग एवं विभाष चंद्र प्रबंधन संकाय के नेतृत्व में कृषि व विज्ञान संकाय के छात्रों द्वारा मंदाकिनी के किनारो पर 130 पौधों रोपण किया गया,जो निकटवर्ती आदिवासी बहुल  मोहकमगढ़ ग्राम के पास है। रोपित किए गए पौधों में प्राय: सभी फलदार पौधे है जैसे-आंवला,नींबू, बेल,कटहल,महुआ, जामुन है। पाकर,गूलर, शीशम, सागौन आदि पर्यावरणीय महत्व के पौधे भी लगाए गए हैं। प्रो गुप्ता बताया कि वृक्षारोपण करने का औचित्य व महत्व  चित्रकूट को हरा भरा बनाना, मंदाकिनी के किनारों की कटान को रोकना, बाढ़ से निजात दिलाना एवं जल रिचार्ज  बढ़ाना की दृष्टि से भी है। पेड़ पर्यावरण के एक अभिन्न हिस्से हैं और इनके बिना धरती पर मानव व अन्य जीवों के अस्तित्व की कल्पना करना असंभव है वर्षात के दिनो में भी-कभी  नदी- नालों के जलस्तर में अचानक वृद्धि हो जाने से उनके किनारे बसे गांवों व शहरों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कई बार तो यह स्थिति बहुत ही भयानक रूप धारण कर लेती है जिससे जानमाल का भारी नुकसान होता है ऐसा होने का कारण यह होता है कि यदि नदी के किनारे वृक्ष नहीं है तो नदी का पानी किनारों की मिट्टी को काटते हुए  गांव और शहरों के अंदर घुस कर बाढ़ के रुप में तबाही मचा देता है अतः नदी के किनारे पौधारोपण करने से बाढ़ से निजात पाया जा सकता है। पूरा विश्व पर्यावरण के समस्त प्रकार के प्रदूषणों से ग्रस्त है चाहे वह वायु प्रदूषण हो, जल प्रदूषण हो,  मृदा प्रदूषण  हो या ध्वनि प्रदूषण पेड़ सभी प्रकार के प्रदूषणों पर नियंत्रण रखते हैं इसके साथ ही को प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करते हैं,  विषैली गैस कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं एवं वातावरण  को नमी प्रदान कर जलवायु को नियंत्रित रखते हैं  पक्षियों तथा पशुओं को आश्रय, भोजन, इत्यादि प्रदान करते हैं किसी भी जल निकाय जैसे नदी, सरोवर, तालाब आदि का अस्तित्व तभी बचाया रखा जा सकता है जब उनके जल भराव क्षेत्र में स्थित जंगलों व पहाड़ों को संरक्षित व संवर्धित किया जाए  गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में कई जगह  जंगल व पर्वत के बाद जल निकायों को स्थान देकर यह इंगित किया है कि पहले जंगल व पर्वत को विकसित करना पड़ेगा तभी  जल निकायों को चिरस्थाई बनाया जासकता है:
बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुं निवत पठावा।।(बाल काण्ड-93/94)
राम दीख मुनि बासु  सुहावन ।  सुंदर गिरि काननु जलु पावन।।(अयोध्या काण्ड,123/124)
सुंदर बन गिरि सरित तडागा । कौतुक देखत फिरेउं बेरागा ।। (उत्तरकाण्ड-55/56)
इस प्रकार से यह स्पष्ट संकेत है कि अगर किसी नदी को विकसित करना है तो उसके किनारे  के वनो व पर्वतों  को पहले विकसित करना होगा उक्त पुनीत कार्य में विश्वविद्यालय के प्रतिभावान छात्रों  ने भाग लिया,जिसमें
कृषि संकाय के अभिषेक तिवारी, अमित विक्रम गंगेले,आशीष गौतम, हरीश खांडे, शिवकुमार विशेन विज्ञान संकाय के भरत किशोर चतुर्वेदी, धनराज गुप्ता, राजीव मिश्रा, इत्यादि ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। वृक्ष रोपण स्थान पर रह रहे संत स्वरूप शीतल प्रसाद निषाद का भी भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०

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